रविवार, 8 दिसंबर 2013

ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

      मित्रों ! आज मैं एक अपनी शुरुआती दौर की ग़ज़ल अपनी आवाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसी रचना से मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की थी | इस रचना का संगीत-संयोजन भी मैंने किया है | आप से अनुरोध है कि आप मेरे Youtube के Channel पर भी Subscribe और Like करने का कष्ट करें ताकि आप मेरी ऐसी रचनाएं पुन: देख और सुन सकें | आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आप इस रचना को अवश्य पसंद करेंगे |
इस रचना का असली आनंद Youtube पर सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और वहां इसे जरूर सुनें...



जा रहा है जिधर बेखबर आदमी ।
वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।


उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।


नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।


दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।


क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।


इस जहाँ में तू चाहे किसी से न डर ,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी । 


 हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।
 

आदमी है तो कुछ आदमीयत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।


तू समझदार है ना कहीं और जा,
ख़ुद से ही ख़ुद कभी बात कर आदमी ।
Copyright@PBChaturvedi

42 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन लिखा है आपने.. चतुर्वेदी जी... हमारी बधाई..

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  2. बहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति ..

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  3. बेहद प्रभावशाली ग़ज़ल है , बधाई स्वीकारें !!

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बहुत सुंदर गज़ल और उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति।

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  6. waaaahhhh gajab ..umda gajal ..or sath hi ise apni awaz me jo apne prastuti di bahut khub .. badhayi :)

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  7. नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर ,

    आदमी जल रहा देख कर आदमी।

    सुन्दर प्रस्तुति। सुन्दर बंदिश भाव पूर्ण अपेक्षाएं आज के आदमी

    से।

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  8. वाहवाही ही काफी नहीं है इन पंक्तियों के लिए। दिल से बधाई इतनी बढ़िया प्रस्‍तुति के लिए।

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  9. बहुत सुंदर लिखा है ...गाया भी बढ़िया है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ....

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  10. बहुत सुंदर ..... गज़ल और गायकी दोनों ही बेहतरीन ।

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  11. bahut sunder gazal aur gayki ka kya kahna

    bahut bahut badhai
    rachana

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  12. चतुर्वेदी जी ! बहुत खुबसूरत ग़ज़ल \आपकी गायकी भी बहुत सुन्दर है !

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  13. बहुत सुंदर ग़ज़ल और प्रस्तुति ......

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  14. लाजवाब गज़ल ... और आवाज़ जो बस मज़ा ही आ गया ...
    कमाल है ...

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  15. बहुत सुंदर व गज़ब की अनुभूति जगाती आपकी कृति , प्रसन्ना भाई धन्यवाद
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  16. बहुत उम्दा ग़ज़ल और उसकी ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  17. क्यों भला इस बात को समझा नहीं हर आदमी

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  18. खुद से ही खुद कभी बात कर आदमी

    सशक्त अभिव्यंजना।

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  19. प्रसन्न बदन जी आपकी ग़ज़ल आदमी को वाकई सोचने पर मज़बूर करती है।

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