शनिवार, 19 दिसंबर 2009

जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ।
मैं तो केवल इतना सोचूँ।

बालिग होकर ये मुश्किल है,
आओ खुद को बच्चा सोचूँ।


सोच रहे हैं सब पैसों की,
लेकिन मैं तो दिल का सोचूँ।

बातों की तलवार चलाए,
कैसे उसको अपना सोचूँ।

ऊपर वाला भी कुछ सोचे,
मैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।


जो भी होगा अच्छा होगा,
मैं बस क्या है करना सोचूँ।
 

Copyright@PBChaturvedi

शनिवार, 28 नवंबर 2009

प्यार तब और बढ़ा

मित्रों!अपने तीन ब्लाग मेरी गज़लें,मेरे गीत और रोमांटिक रचनायें को इस एक ही ब्लाग में समेटने के बाद मैंने रोमांटिक रचनायें कम ही पोस्ट की है । इस बार एक गीत प्रस्तुत है-


प्यार तब और बढ़ा और बढ़ा और बढ़ा,
जब लगाये गये पहरे प्यार के ऊपर.....

कोई अनारकली दीवार में चुनवाई गई,
कोई लैला कहीं यूं ही तड़पाई गई,
यूं सरेआम जमाने में रुसवाई हुई,
सितम जो ढाए गए कर सके कोई असर...
प्यार तब और बढ़ा और बढ़ा और बढ़ा.....

कहीं पे कैस कोई प्यार में दीवाना हुआ,
कहीं रांझा कोई हीर का निशाना हुआ,
और हर प्यार के खिलाफ़ ये जमाना हुआ,
मर गये इश्क के मारे ये सितम सह-सह कर...
प्यार तब और बढ़ा और बढ़ा और बढ़ा........

बुधवार, 18 नवंबर 2009

जीवन की एक महत्वपूर्ण यात्रा

आज आप को अपने जीवन की एक बहुत ही यादगार यात्रा का विवरण देना चाहूँगा।ये यात्रा मात्र नही है बल्कि एक तीर्थयात्रा है जो देश के हर नागरिक को अवश्य करनी चाहिये।यह यात्रा है अमर देशभक्त शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि और हुसैनीवाला बार्डर पर भारत-पाक सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं द्वारा किये जाने वाले परेड का।सबसे पहले मैं इस यात्रा के संयोजक और अपने अग्रज आदरणीय रमेश सचदेवा जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूँगा क्योंकि उनकी वजह से ही हम इस पवित्र धरती के दर्शन कर सके वरना हमारे लिये तो ये सपना ही रहता।हमारे साथ-साथ हरियाणा पब्लिक स्कूल मंडी डबवाली और शेरगढ़ के छात्र-छात्रायें भी थे और कुछ विशेष अतिथि भी।मैंने अपनी पत्नी,पुत्री और पुत्र के साथ यह यादगार यात्रा की.......
सबसे पहले हमने १९६५ के युद्ध में पाकिस्तान से जीत के बाद बरामद ये टैंक देखा[देखिये चित्र-१,२,३,४]।
अब पहले मैं इस जगह के बारे में बताना चाहूंगा........ [चित्र -५-२३]-
पंजाब के फीरोजपुर जिले में स्थित इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व है।भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को लाहौर में रातों-रात उनके शहीद होने के बाद अंग्रेजों ने उनके मृत शरीर को यहाँ लाकर मिट्टी का तेल छिड़ककर जला दिया।१९६५ में भारत-पाक युद्ध में पाक ने इस जगह कब्जा कर लिया और उनकी मुर्तियों आदि को पाकिस्तान लेकर चले गये।१९७१ के युद्ध में पराजित होने के बाद शिमला-समझौता के अन्तर्गत पुन: ये क्षेत्र भारत के पास आया। इन शहीदों की समाधि के साथ ही शहीद बटुकेश्वर दत्त की भी समाधि है क्योंकि उन्होनें अपनी मृत्यु के बाद यहीं पर अपनी समाधि की इच्छा प्रकट की थी।पास ही शहीद भगत सिंह की माता श्रीमती विदिया वती; जिन्हें १९७३ में पंजाब सरकार ने ‘पंजाब माता’ के खिताब से सम्मानित किया था और जिन्होनें इन शहीदों के साथ ही अपनी समाधि बनाने की इच्छा जताई थी;की समाधि भी उनके स्वर्गवास के बाद १९७४ में बनाई गई।
दर असल यह स्थल आजादी के पहले रेलवे स्टेशन था और लाहौर तक रेलवे मार्ग से जुड़ता था।इस पुराने रेलवे-स्टेशन की दीवारों पर १९६५ के भारत -पाक युद्ध के बीच गोलीबारी के साक्ष्य अब भी देखे जा सकते हैं।
चित्र-२४-२७ -[हुसैनीवाला बार्डर पर भारत-पाक सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं द्वारा किये जाने वाला परेड]-यह भी एक रोचक और गौरवपूर्ण अनुभव था।दोनों ओर के सैनिकों के प्रदर्शन के समय नागरिक अपने-अपने देश के सैनिकों का उत्साहवर्द्धन कर रहे थे।कभी-कभी तो माहौल में वीर-रस का इतना प्रभाव हो जाता था कि हर कोई अपने को सैनिक अनुभव कर रहा था।वाह.....इस अनुभव को बस महसूस किया जा सकता है.....


















































शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

यार नहीं जो काम न आए

बहुत दिनों बाद आज कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ..दरअसल मैं लगभग १ माह नेट से दूर रहा...आशा है आप को अवश्य पसंद आएगी ...

यार नहीं जो काम न आए।
प्यार वही जो साथ निभाए।

आता वक्त बुरा तो अक्सर,
जिससे आशा वो ठुकराए।

दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आए।

वक्त अगर बीतेगा ये भी,
दोबारा फिर हाथ न आए।

भाई-भाई अब लड़ते हैं,
आपस में ये बात न आए।

तू-तू,मैं-मैं करती दुनिया,
ऐसे तो हालात न आए।

सच पूछो तो वो ही जवां है,
जो मिट्टी का कर्ज़ चुकाए।
Copyright@PBChaturvedi

रविवार, 27 सितंबर 2009

जो है सच्ची वही खुशी रखिये

संभवत: ३०-०९-०९ को १५ दिनों के लिए दिल्ली जाना हो,इस कारण हो सकता है कि अगला पोस्ट वहीं से प्रस्तुत करुँ....तब तक ये ग़ज़ल प्रस्तुत है....

जो है सच्ची वही खुशी रखिए।
सीधी-सादी सी ज़िन्दगी रखिए ।

जो बुरे दिन में काम आते हों,
ऐसे लोगों से दोस्ती रखिए।

वक्त जब भी लगे अंधेरे में,
साथ यादों की रौशनी रखिए।

ग़म ये कहना सभी से ठीक नहीं,
राज अपना ये दिल में ही रखिए।

चीज कोई जो तुमको पानी हो,
चाहतों में दीवानगी रखिए।

दोस्ती दुश्मनी न बन जाये,
अपने काबू में दिल्लगी रखिए।

लुत्फ़ तब दुश्मनी का आयेगा,
साथ कांटों के फूल भी रखिए।

देवता आप मत ‘अनघ’ बनना,
आप अपने को आदमी रखिए।

Copyright@PBChaturvedi

रविवार, 20 सितंबर 2009

भजन/मन की बात समझने वाले

अब मैनें अपने सभी निजी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी'' में पिरो दिया है।दरअसल मैं चाहता हूँ कि आप मेरी हर रचना देंखें परन्तु सभी दर्शकगण और पाठक अलग-अलग ब्लाग्स पर सभी रचनाएं नहीं पढ़ पाते थे।मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ के सभी अनुसरणकर्ता बन्धुओं और मित्रों से अनुरोध है कि वे मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ पर से अनुसरण हटा लें और मेरे इस ब्लाग मेरी ग़ज़लें, मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी' का एक बार पुनः अनुसरण कर लें;असुविधा के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ।नवरात्रि के शुभ अवसर पर एक भजन प्रस्तुत है....

मन की बात समझने वाले, तुमको भला मैं क्या बतलाऊँ।
मैं तो तेरे दर पे खडा़ हूँ, इच्छा पूरी कर दो जाऊँ।


मिट्टी का तन मैंने पाया,
मिट्टी को कंचन से सजाया,
ज्यादा खोया कम ही पाया,
इसी भरम में जन्म गंवाया,
बीत गई है उम्र ये जैसे,अब ना बाकी उम्र गंवाऊँ...


मंदिर में बस आये-जाये,
मन पर पाप का मैल चढा़ये,
भक्त ये प्रभु को भी बहकाये,
लड्डू-पेड़ों से बहलाये,
सारी सृष्टि रचने वाले,मैं क्या तुमको भोग लगाऊँ...
Copyright@PBChaturvedi

रविवार, 13 सितंबर 2009

कैसे कह दें प्यार नहीं है

अब कुछ प्यार की बात भी हो जाए...है न...

कैसे कह दें प्यार नहीं है।
हम पत्थरदिल यार नहीं हैं।

अपनी बस इतनी मजबूरी,
होता बस इज़हार नहीं है।

मिलने का कुछ कारण होगा,
ये मिलना बेकार नहीं है।

तुम मुझको अच्छे लगते हो,
अब इससे इनकार नहीं है।

कुछ लोगों से मन मिलता है,
इससे क्या गर यार नहीं हैं।

तुम फूलों सी नाजुक हो तो,
हम भौरें हैं खा़र नहीं है।

क्या मेरे दिल में रह लोगे,
बंगला, मोटरकार नहीं है।

तनहा-तनहा जीना मुश्किल,
संग तेरे दुश्वार नहीं है।

हुश्न की नैया डूबी-डूबी,
इश्क अगर पतवार नहीं है।

मैं तबतक साधू रहता हूँ,
जबतक आँखें चार नहीं हैं । 
Copyright@PBChaturvedi 

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रविवार, 6 सितंबर 2009

ग़ज़ल/संजीदगी से गाओ ये गीत दर्द का है

अक्सर हम गायकों को गीत गाते हुए सुनते हैं|मुझे एक बार ख्याल आया की शायद कभी ऐसा भी होता होगा कि गीत तो दर्द भरा हो,पर गायक उसे हलके-फुल्के अंदाज़ में गाए जा रहा हो|जबकि उसे संजीदगी से वह गीत गाना चाहिए था|बस बन गई कुछ पंक्तियाँ :-

संजीदगी से गाओ ये गीत दर्द का है।
ऐसे न मुस्कुराओ ये गीत दर्द का है।

शायर का दर्द तेरी आवाज़ में भी उभरे,
ऐसी कशिश से गाओ ये गीत दर्द का है।

गुजरा है ये तुम्हीं पर ऐसा लगे सभी को,
आँखों में अश्क लाओ ये गीत दर्द का है।

जितने भी सुन रहे हों उस गम में डूब जायें,
कुछ यूँ समां बनाओ ये गीत दर्द का है।

जब लिख रहा था इसको रोया बहुत था दिल ये,
वो दर्द फिर जगाओ ये गीत दर्द का है।

वो सच्ची शायरी है दिल पर असर करे जो,
दिल में ‘अनघ’ समाओ ये गीत दर्द का है।

Copyright@PBChaturvedi

रविवार, 30 अगस्त 2009

बात करते हैं हम मुहब्बत की

बात करते हैं हम मुहब्बत की, और हम नफ़रतों में जीते हैं ।
खामियाँ गैर की बताते हैं, खुद बुरी आदतों में जीते हैं ।

चाहते हैं सभी बढ़ें आगे, तेज रफ़्तार जिन्दगी की है,
भागते दौड़ते जमाने में, हम बड़ी फ़ुरसतों में जीते हैं ।

आज तो ग़म है बेबसी भी है, जिन्दगी कट रही है मुश्किल से,
आने वाला समय भला होगा, हम इन्हीं हसरतों में जीते हैं ।

आज के दौर में कठिन जीना और आसान है यहाँ मरना,
कामयाबी बडी़ हमारी है, हम जो इन हालतों में जीते हैं ।

चीज जो मिल गई वो मिट्टी है और जो खो गया वो सोना था,
जो ‘अनघ’ चीज मिल नहीं सकती, हम उन्हीं चाहतों में जीते हैं ।
 

Copyright@PBChaturvedi

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शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मुझे तनहाइयां भाती नहीं है

मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं। 
मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नहीं है।

तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,
सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।

गये हो दूर तुम जबसे यहाँ से,
बहारें भी यहाँ आती नहीं है।

तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
वहाँ कोयल भी अब गाती नहीं है।

तुझे अपना बनाना चाहता था,
कसक दिल की अभी जाती नहीं है।

शिकायत है ‘अनघ’ किस्मत से अपने,
मुझे ये तुमसे मिलवाती नहीं है।

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